भारत और चीन के सीमा विवाद का नतीजा यह है कि आने वाले बुधवार को चीन की मशहूर कंपनी ओप्पो ने अपना ऑनलाइन लांचिंग का कार्यक्रम रखा था। भारतीय व्यापारियों में रोष के कारण रद्द करना पड़ा। इस विवाद का परिणाम भारत के कई मशहूर शहरों में भी दिखा। कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स ने नई दिल्ली में “सामान हमारा अभिमान” नाम का नया कैंपेन भी चलाया। जिसमें भारत में बने सामान को इस्तेमाल करने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया।
कुछ राज्यों ने की चीनी सामान के बहिष्कार की पहल
सिलीगुड़ी जोकि पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख व्यापारिक शहर है। जिसमें हांगकांग मार्केट नाम से एक मशहूर मार्केट है। वहां के व्यापारियों द्वारा इस मशहूर मार्केट का नाम बदलने का निर्णय लिया गया और साथ-साथ बॉलीवुड ने भी इस अभियान में जुड़ते हुए चाइनीस समान का बहिष्कार करने के लिए लोगों को जागृत किया।
गुजरात के कई शहरों में भी इसी तरह का प्रदर्शन देखा गया। वहां पर चीनी सामान के बहिष्कार की कई वीडियो वायरल हो रही है। जिसमें चीनी सामान को भारतीयों द्वारा तोड़ते हुए दिखाया गया है।
चाइना और भारत के निवेश पर एक नजर
चीन का भारत में लगभग हर साल 6 अरब का निवेश किया जाता है जोकि और देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है जैसे कि पाकिस्तान में यह सिर्फ 3 अरब है और श्रीलंका में 0.5 अरब है और वही नेपाल में यह लगभग यह निवेश 1.5 अरब का है। चाइना भारत के मशीनरी,ऑर्गैनिक केमिकल्स,टेलिकॉम उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े उपकरण,जैविक रसायन और खाद आदि इन क्षेत्रों में निवेश करता है।
भारत चाइना को क्या क्या बेचता है।
आईटी सेवाएं, हीरा और अन्य प्राकृतिक रत्न,दवाइयां,इंजीनियरिंग सेवाएं, कॉटन यानी कपास, कॉपर यानी तांबा आदि बेचता है पर भारत और चीन के आयात और निर्यात में जमीन आसमान का फर्क है। भारत हर साल अरबों रुपए का घाटा उठाता है। भारत में नई स्टार्टअप “यूनिकॉर्न कंपनियां” जोकि लगभग एक अरब तक की कीमत की होती हैं। उसमें चीन का आधे से ज्यादा कंपनियों में निवेश है। लगभग 30 में से 18 कंपनियों में निवेश है। विदेशी मामलों के थिंकटैंक “गेटवे हाउस” ने लगभग 75 कंपनियों की पहचान की है जो एग्रीगेशन सर्विस, फिनटेक, मीडिया/सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स आदि भारतीय कंपनियों में चाइना ने निवेश किया हुआ है।
बाइटडांस, टिकटॉक जैसी कंपनियां जो कि भारत में बहुत लोकप्रिय हैं। इनका प्रयोग यूट्यूब से भी ज्यादा हो गया है। यह एक तरह का वीडियो पब्लिशिंग प्लेटफॉर्म है। जिससे चाइना हर साल अरबों रुपए कमाता है।
चीन और भारत का 2018 में कुल व्यापार 95.54 अरब रुपए था। जिसमें से भारत का कुल निर्यात सिर्फ 18.84 अरब है। भारत को हर साल चीन के साथ व्यापार करने में लगभग 70 अरब रुपए का घाटा होता है।
क्या भारत की जनता चीन के समान का बहिष्कार सकती है?
क्या भारत की जनता चीन के समान का बहिष्कार सकती है? इसको जानने के लिए हमें भारत और चीन के बीच में जो व्यापारिक संबंध है। उसको जानना बहुत जरूरी है तो देखते हैं कि चीन भारत में क्या क्या भेजता है और भारत चीन में क्या क्या भेजता है। चीन हमारे देश में टेलीकॉम उपकरण भेजता है। इसमें वह पूरी दुनिया को टक्कर देता है। आज हर भारतीय के हाथ में लगभग 90% जो फोन है वह चाइनीस कंपनी के हैं। साथ ही जो भी इन की accessories हैं वह भी भारत चाइना से सस्ते रेट में इंपोर्ट करता है।चीन की ताकत है कम रेट में समान को उपलब्ध कराना।
आज हम जहां भी देखते हैं भारत के प्रमुख व्यापारिक शहरों में चीनी समान का बोलबाला है। दिल्ली के सदर बाजार और पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में हांगकांग मार्केट जैसी प्रमुख मार्केट में लगभग 70% चाइनीस समान मिलता है।
भारतीय सरकार ने उठाए कदम कुछ
भारतीय थिंकटैंक “गेटवे हाउस” ने 75 कंपनियों की पहचान की। जिनमें चीनी कंपनियों का सीधा-सीधा निवेश है। अब उन पर सरकार द्वारा कुछ कार्रवाई की जाने की योजना बनाई जा रही है। भारत सरकार ने निवेश को लेकर हाल ही में अपने एफ०डी०आई (फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट) को यह कह कर टाल दिया कि जिन देशों के साथ भारत के सीमा विवाद चल रहे हैं उनको निवेश से पहले परमिशन लेनी पड़ेगी। केंद्र सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर है कि (बी०एस०एन०एल) और (एम०टी०एन०एल) देसी टेलीकॉम कंपनियों को आदेश दिया गया है कि वह 4जी में चीन के किसी भी प्रकार के निवेश को रोका जाए।