उज्जैन नगरी महाकाल की नगरी कहलाती है। यहां शिव के साथ -साथ उनके कोतवाल श्री भैरव महाराज भी आलौकिक रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि उज्जैन में प्रवेश करते है ज्ञान, चेतना और शक्ति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। कहते हैं कि अगर महाकाल की आराधना से आप मृत्यु पर विजय पाते हैं तो श्री भैरव की आराधना से आपके अधिदैविक, अधिभौतिक और सांसारिक तीनों ताप दूर हो जाते हैं। कहतें हैं कि अवन्तिकापुरी अर्थात उज्जैन का रक्षण मदिरा पान करने वाले श्रेकालभैरव पुरातन काल से करते आ रहे हैं। कहते हैं कि एक समय ब्रह्मा और विष्णु में विवाद हुआ और दोनों ही खुद को श्रेष्ठ मानते हुए शिव को तुच्छ बताने लगे। तब श्री शिव की क्रोधाग्नि से एक विकराल पुरूष का जन्म हुआ जिसे शिव ने ब्रह्मा पर शासन कर संसार का पालन करने का आदेश दिया। तब शिव की आज्ञा से आविर्भूत होकर काल भैरव ने ब्रह्मा का पांचवा सिर अपने नर्वाग्र से काट दिया। तब ब्रह्मा और विष्णुजी को अपनी गलती का अहसास हुआ और दोनों शिव को दण्डवत प्रणाम कर क्षमा मांगने लगे।
भोलेनाथ ने उन दोनों को क्षमा करते हुए अभतदान दिया तथा श्रीभैरव को पापों का भक्षण करने हेतु पाप भक्षण नाम डियस तथा उज्जैन का कोतवाल नियुक्त कर दिया । तब से ही काल भैरव उज्जैन की रक्षा करते आ रहे हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार पूर्वकाल में कालचक्र के द्वारा कुछ कृत्याएँ प्रकट की गई जो योगिनिगण के नाम से प्रसिद्ध थी। उनमें से काली नामक योगिनी ने पुत्रवत पाला था। भैरव जी ने अपनी शक्ति से उस समय सारे पाप और उत्पात नष्ट कर दिए तथा भयंकर और दुष्ट प्रवृति की मातृकाओं को वश में कर लिया। तब से ही इन्हें पाप भक्षणकर्ता के रूप में जाना जाता है।