जिंदगी के लिए चमत्कारी रहे 15 वर्ष -MS Dhoni

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धोनी के अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में हुए 15 वर्ष पूरे पहुंचाया टीम को अनूठे मुकाम पर

रांची।आज के दिन 23 दिसंबर 2004 को महेंद्र सिंह धोनी ने पहली बार इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा था। वह मौका जब शुरुआत हुई थी क्रिकेट के नए युग की। आज से 15 साल पहले यानी 2004 के दौरान किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कंधे तक लंबे बालों वाला यह नौजवान एक दिन भारतीय क्रिकेट की दशा और दिशा दोनों बदल देगा। बांग्लादेश के खिलाफ तीन मैच की वन-डे सीरीज के पहले मुकाबले में रांची जैसे छोटे शहर के इस विकेटकीपर बल्लेबाज को प्लेइंग इलेवन में खेलने का मौका दिया। हालांकि खुद माही कभी इस डेब्यू को याद नहीं करना चाहेंगे।

रांची का राजकुमार

कई बार माही बिना खाता खोले अपनी पहली ही गेंद पर वह रन आउट जो हो जाते हैं, लेकिन वह कहते हैं न कि हर बड़ी कामयाबी की शुरुआत एक छोटी गलती के साथ होती है। आज रांची का यह राजकुमार आईसीसी के तीन सबसे बड़े इवेंट पर कब्जा जमाने वाला एकमात्र कप्तान है। धोनी ने जो क्रिकेट जगत में यश और सम्मान कमाया है वो शायद ही किसी और खिलाड़ी या कप्तान को नसीब हुआ होगा। आज खेल प्रेमियों और खासकर उनके चाहने वालों के लिए बहुत बड़ा दिन है और पूरे देश में उनके प्रशंसक जमकर जश्न मना रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो उनके लिए सवेरे से बधाइयों का तांता लगा हुआ है।

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जर्सी का 7 नंबर बेमिसाल

इस नंबर का धोनी की जिंदगी के साथ एक अटूट रिश्ता रहा है और माही ने भी खुलकर सात अंक के साथ अपने रिश्ते को पूरी दुनिया के सामने बयां किया है। धोनी कहते हैं कि जब वह पहली बार भारतीय टीम के साथ केन्या गए तो वो अपने लिए जर्सी नंबर ढूंढ रहे थे। उस समय सात नंबर खाली था और वह उन्हें मिल गया।
धोनी का इस अंक के साथ एक रिश्ता जुड़ गया। हालांकि यह भी एक संयोग ही है कि उनका जन्म साल के सातवें महीने के सातवें दिन ही हुआ। सिर्फ उनकी जर्सी का नंबर ही नहीं बल्कि सात नंबर आपको उनकी हर बाइक और सभी कार पर अंकित दिखेगा। यही नहीं वो ‘7’ नाम के एक परफ्यूम और डीओ के ब्रांड एम्बेस्डर भी हैं। इसके अलावा माही ने ‘फिटसेवन’ के नाम से देश-विदेश में जिम की एक चेन खोली है।

अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् की तीनों ट्रॉफियों पर कब्ज़ा करने वाले कप्तान

धोनी पहले ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के तीन सबसे बड़े इवेंट पर कब्जा जमाया है। 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप को कौन भूल सकता है। पहली बार कप्तानी कर रहे धोनी ने न सिर्फ अपनी बल्लेबाजी से टीम को शिखर तक पहुंचाया बल्कि कप्तानी का ऐसा नमूना पेश किया की, जिसका उदाहरण आज भी बड़े-बड़े मैनेजमेंट स्कूल के कोर्स में पढ़ाया जाता है।

हर खिलाडी ने दिया साथ

पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए वर्ल्ड टी-20 के फाइनल में जिस भरोसे के साथ उन्होंने आखिरी ओवर जोगिन्दर शर्मा को पकड़ाया था। उसी कप्तान के भरोसे को जोगिन्दर ने जीत में तब्दील कर दिया और रातों-रात स्टार बन गए। यह तो सिर्फ धोनी की कप्तानी का पहला ट्रेलर था, इसके बाद तो उन्होंने कई ऐसे अजूबे किए, जो लोगों के लिए भूलना आसान नहीं होगा। 2011 वर्ल्ड कप में मिली जीत की पूरी स्क्रिप्ट एमएस ने मानो जैसे खुद ही लिखी हो।

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सुनील गावस्कर का कहना कि मरते वक़्त वो धोनी का विजयी छक्का देखना चाहेंगे

2011 विश्व कप फाइनल का वो मुकाबला शायद ही कोई भूल पाएगा, जब कप्तान ने खुद को प्रमोट कर बैटिंग ऑर्डर में युवराज सिंह से पहले बल्लेबाजी के लिए मैदान पर भेजा और टीम को जीत दिलाकर ही पवेलियन वापस लौटे। धोनी ने अपनी कप्तानी में टीम को 28 साल बाद विश्व कप दिलाया और फाइनल में धोनी का वो छक्का तो शायद ही कोई इस जन्म में भूल पाएगा। इसी छक्के को लेकर सुनील गावस्कर ने कहा था, जब मेरी आखिरी सांसें चल रही होंगी और कोई एक चीज जिसे मैं देखना चाहूंगा वो होगा फाइनल में धोनी का मैच विनिंग छक्का।

तीन ट्राफी जितने वाली दुनिया के पहले कप्तान

यही नहीं आईसीसी की तीसरी ट्रॉफी यानी चैंपियंस ट्रॉफी, जिसे मिनी वर्ल्ड कप भी कहा जाता है। उस पर भी 2013 में उनकी टीम ने जीत हासिल कर एक इतिहास रच दिया। वो आईसीसी की तीनों ट्रॉफी जीतने वाले दुनिया के पहले कप्तान हैं। इस रिकॉर्ड की बराबरी शायद ही कोई कर पाएगा। टेस्ट क्रिकेट में भी धोनी अपनी कप्तानी में टीम को नंबर एक तक पहुंचा दिया था।

एक खिलाड़ी से कप्तान बनने तक का सफ़र

धोनी को मिली कप्तानी के पीछे भी एक जबरदस्त कहानी है। शुरुआत में बीसीसीआई टी-20 को इतना तवज्जो नहीं दे रही थी। यहां तक की 2007 में होने वाले पहले टी -20 वर्ल्ड कप में टीम तक भेजने को भी तैयार नहीं थी। आईसीसी के दबाव के बाद बड़ी मुश्किल से बीसीसीआई टीम भेजने को राजी हुई। राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसे बड़े-बड़े नामों ने इस टी-20 वर्ल्ड कप से किनारा कर लिया था। कायदे से इंडिया ने अपनी ‘बी’ टीम साउथ अफ्रीका भेजी थी और कप्तानी थमा दी थी धोनी के हाथों। मगर धोनी को इस फॉर्मेट की पूरी समझ थी। महेंद्र ने करोड़ों हिदुस्तानियों के उम्मीदों का बोझ अपने कंधों पर उठाया और पहला टी-20 वर्ल्ड कप घर ले आए।

 

अच्छी सोच के धनी

धोनी हमेशा से ही एक टीम प्लेयर रहे हैं और सिर्फ और सिर्फ टीम के लिए ही सोचते है। यही वजह रही की वो कप्तान होने के बावजूद ज्यादातर छह और सात नंबर पर ही बैटिंग करते रहे। इसके बावजूद वन-डे में उनकी औसत करीब 51 की है, जबकि टी-20 जैसे फॉर्मेट में भी उन्होंने करीब 36 की औसत से रन बनाए हैं। टेस्ट में भी उनका तकरीबन 38 का औसत है।

जीवन का संघर्ष

धोनी जिन्होंने करियर की शुरुआत टिकट कलेक्टर से की थी और बाद में भारत के लिए ट्रॉफी कलेक्टर बन गए। स्वभाव से बहुत विनम्र इंसान। विनम्र इतने की जुलाई 2018 को खेले गए आयरलैंड के खिलाफ सीरीज के दूसरे टी-20 मैच में प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं बने तो ड्रिंक्स लेकर बीच मैदान चले गए। यह धोनी की महानता ही है कि एक महान कप्तान का तमगा मिलने के बावजूद वह मैदान के भीतर जाकर खिलाड़ियों को पानी पिलाने लगे। विश्व क्रिकेट में ऐसी घटना आपने कितनी बार देखी होगी?

पद्म-भूषण लेने का एक अलग अंदाज

2018 में जब धोनी अपना पद्म-भूषण पुरस्कार लेने पहुंचे तो हर कोई हैरान रह गया क्योंकि धोनी क्रिकेटर की ड्रेस में नहीं बल्कि सेना के अफसर की वर्दी पहनकर वहां पहुंचे थे। लेफ्टिनेंट कर्नल धोनी ने वर्दी का पूरा सम्मान भी रखा और बाकायदा पूरी ड्रिल करते हुए राष्ट्रपति के पास पहुंचे। पहले सेल्यूट किया और फिर सम्मान लिया।

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